।। जाति।।
रामजी पंडित और झब्बर नेता का घर आमने सामने था खडंजा मार्ग दोनो की सरहद निर्धारित करता था दोनो लोग पढ़े लिखे नही थे पर दुनियादारी से बडा वास्ता था ,दोनो मे कभी पटती नही थी फिर भी कोई शत्रुता नही थी
रामजी पंडित ब्राम्हण थे धर्म कर्म मे आस्था रखते मंगलवार को उपवास रखते सुबह स्नान करते हालांकि पूजा पाठ का विधिज्ञान नही था ,उधर झब्बर नेता जाति से हरिजन थे कबीर पंथी थे , दोनो की आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी थी दोनो ही गरीब थे ,युं तो वे दोनो गांव मे मजदूरी करने नही जाते पर मनरेगा मे मजदूरी कर लेते थे ।
गर्मी की दोपहरी मे बरगद के नीचे जब लोग सुस्ताने बैठते तब अक्सर झब्बर और पंडित की बहस छिड़ जाती ना पंडित इतने पढे लिखे थे कि संस्कृत के श्लोक सुनाते ना झब्बर इतने जानकार कि अम्बेदकर का दर्शन बताते पंडित ब्राम्हण कुल की श्रेष्ठता बताते तो झब्बर कबीर को दोहे कहते ,खूब झड़प होती बाभन सूद तक बात आ ज़ाती ,लोग उनकी बातों से उत्तेजित नही होते वल्कि मजे लेते कोई पंडित की तरफ दारी करता तो कोई झब्बर की हुंकारी भरता ।
दोनो मे अजीब जलन थी पिछली बार विधान सभा चुनाव मे जब मंत्री जी ग्राम्य प्रवास पर थे झब्बर के घर खाना खाया था पंडित को अच्छा ना लगा ,जब गांव के लोग पंडित की पैलगी करते तो झब्बरक को अखरता
ना झब्बर कभी पंडित की पैलगी करते ना पंडित झब्बर की बन्दगी । गरीबी मे भी स्वाभिमान व सिद्धान्त पोषित हो २हा था ।
पंचायत के चुनाव मे सारदा प्रधान इस बार भी विजयी हुए थे गांव के बडे आदमी थे बड़े बडे लोगो से जान पहचान थी नेता मंत्री दरोगा सिपाही सबका आना जाना था जीत की खुशी मे एक भब्य भोज का कार्यक्रम किया था प्रधान ने ,पूरा गांव इर्द गिर्द के गांव के लोग आमन्त्रित थे और कुछ बड़े लोग भी मेहमान थे हवेली जैसा प्रधान का घर कुमकुम बत्तियों के प्रकाश से नहाया था बड़े बडे पंडाल लगे थे प्रधान जी ने दो तरह के भोज की व्यवस्था की थी एक वह जहां सारे गांव वालो के खाने की व्यवस्था थी दूसरा जहां बडे लोगो का खाना था ।
झब्बर ने सुना था कि मन्त्री जी भी आने वाले है मुलाकात हो जायेगी यही सोच कर वह उस पंडाल की ओर बढ़े चले गये जहां उन लोगो के खाने पीने बैठने की व्यवस्था थी ,अभी पंडाल मे कुछ सूट बूट वाले लोग ही थे झब्बर भी नया कुर्ता धोती पहन कर गये थे ,स्वजनो का सम्मान मिलता था अतः कोई संकोच ना हुआ,इधर उधर देखा और पंडाल मे पड़े सोफे पर बैठ गये।कुछ लोग भोजन कर रहे थे कुछ अभी आपस मे बाते कर रहे थे थोडी देर तक झब्बर युं ही बैठे रहे खाने की सोचते पर संकोच से मन पीछे हट जाता ,उधर पंडित ने झब्बर को वी० आई० पी० पंड़ाल की ओर जाते देखा तो उनसे रहा न गया पहले तो गांव वालो की पंघत मे ही खाने का विचार था पर अब तो प्रतिस्पर्धा का भाव आ गया ,सोचा झब्बर वहां खायेगा तो मै तो पंडित हूं प्रधान का पूरा परिवार पांलगन करता है,और वह भी उसी पंडाल की ओर बढ़ गये अंदर गये तो देखा कि झब्बर सोफे पर बैठे थे। पंडित प्रतियोगिता से सीधे भोजन के स्टाल की ओर चले गये प्लेट उठायी और भोजन निकालने लगे ,अब तो झब्बर का भी आत्म विश्वास बढ़ गया था उन्हे लगा कि वह नाहक संकोच कर रहे थे ,उठे प्लेट उठा कर आगे बढ़े इधर उधर देखा सब कुछ सहज था सामान्य था ,मन आत्माभिमान से पुलकित हो रहा था कि वह भी ऐरे गैरो मे नही सम्भ्रान्त जनो मे सम्मलित है ।
कहते है कि तूफान आने से पूर्व सागर मे शान्ति पराकाष्ठा पर होती है ऐसा ही कुछ घटित होने वाला था दोनों ने पहला निवाला ही लिया था कि प्रधान का छोटा बेटा बबलू व्यवस्था देखने आ गया पंडित और झब्बर को खाते देख उसकी आखें लाल हो गयीं त्योरियां चढ़ गयीं ,दांत जकड़ लिए ,महमानो के बीच आयोजन का तमाशा न हो बस यही डर था नही तो ना जाने क्या कर बैठता अमीरी ,गरीबी को अपने बराबर कैसे देख सकती ,मालिक मजूर को बराबर कैसे देख सकता था ,
बबलू भी स्वयं को रोक नही पाया । दोनों के हाथों से खाने की प्लेट छीन ली हाथ पकड़े और सीधे पंडाल के बाहर आ गया ,पंडित ,झब्बर अवाक थे,बबलू बोलता जा रहा था तुम लोग क्या जानो मान मर्यादा जरा सा मान मिल जाय तो सर पर चढ़ जाओगे वहां क्या मोती पका था जो गांव वालो के साथ नही खा सके ,खाना साग भात शौक नबाबो के , नेता बनने चले है राजवाड़ो के साथ खाने से राजवाड़े हो जाओगे दरिद्र कहीं के जरा सी भी इज्जत हो तो अब चले जाओ यहां से ,दोनों श्रवण शून्य अवाक जिस आत्माभिमान के प्रकाश मे वह वर्षों से जी रहे थे क्षण भर मे ग्लानि के अंन्धेरे मे बदल गया था ,उनके आपस के झगडो में अपमान को स्थान न था ,ऊंच नीच का भाव अवश्य था पर कटुता ना थी ,चुभन होती थी पर पीड़ा ना थी ,वह संज्ञा शून्य , तर्क हीन थे जो प्रकाश कुछ क्षण पूर्व आन्दित कर रहा था अब आखों मे चुभने लगा था ,वहां बज रहा संगीत कोलाहल सा लगने लगा था ,अब वह अपने धुंधले जीवन की ओर लौटना चाहते थे नजरें झुकी थी मानो दृष्टि से उदासीन हो गई हों हृदय आकुन्ठित धड़कनो से बेसुध था चेहरा कान्तिहीन था,उनके बोझिल पांव धीरे -धीरे प्रकाश से दूर जा रहे थे ज्यो ज्यों अंन्धेरा बढ़ रहा था उनमे चेतना भी बढ़ रही थी
अंधेरे मे कुछ दूर चलने के बाद झब्बर ने मौन तोड़ा और बोले पंडित इतना अपमान कभी ना हुआ जीवन मे ।
हां पर इस अपमान ने एक नया जीवन दिया हमको पंडित ने उत्तर दिया ,वह कैसे झब्बर ने जिज्ञासु भाव से पूद्दा ।
अगर जाति की बात होती ,तो मै तो बाभन हूं मुझे क्यो भगाता,और अगर जाति की बात थी मंगल प्रसाद दरोगा भी तो पासवान है और वह विकास अधिकारी वह भी तो हरिजन है
बात छोटे -बडे आदमी की है झब्बरभाई !
गरीब अमीर की बात है ,
इतना भी नही समझते ,हम तो नाहक जाति पांति पर झगड़ते रहे
पंडित ने उत्तर दिया ।
तब तो हम दोनो एक जाति के हुए ,गरीब जाति के ,झब्बर ने व्यंग भाव मे कहा ।
सच कहा तुमने आज मै अपनी जाति जान गया और यह जान कर कि हम तुम सगे है बहुत अच्छा लगा ,आओ गले लग जाओ बिरादर पंडित ने मुस्करा कर कहा ,
दोनो मस्करा रहे थे आखें छलक पड़ी थीं ,हम दोनों आज एक साथ बैठ कर खायेंगें रून्धे गले से पंडित कह रहे थे ।
चन्द्रमा से काले बादल छंट गये थे चारो ओर चादंनी बिखर गई थी रास्ता दिखने लगा था ,उजाला फिर से अच्छा लगने लगा था।
।।महेश मानव।।
रामजी पंडित और झब्बर नेता का घर आमने सामने था खडंजा मार्ग दोनो की सरहद निर्धारित करता था दोनो लोग पढ़े लिखे नही थे पर दुनियादारी से बडा वास्ता था ,दोनो मे कभी पटती नही थी फिर भी कोई शत्रुता नही थी
रामजी पंडित ब्राम्हण थे धर्म कर्म मे आस्था रखते मंगलवार को उपवास रखते सुबह स्नान करते हालांकि पूजा पाठ का विधिज्ञान नही था ,उधर झब्बर नेता जाति से हरिजन थे कबीर पंथी थे , दोनो की आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी थी दोनो ही गरीब थे ,युं तो वे दोनो गांव मे मजदूरी करने नही जाते पर मनरेगा मे मजदूरी कर लेते थे ।
गर्मी की दोपहरी मे बरगद के नीचे जब लोग सुस्ताने बैठते तब अक्सर झब्बर और पंडित की बहस छिड़ जाती ना पंडित इतने पढे लिखे थे कि संस्कृत के श्लोक सुनाते ना झब्बर इतने जानकार कि अम्बेदकर का दर्शन बताते पंडित ब्राम्हण कुल की श्रेष्ठता बताते तो झब्बर कबीर को दोहे कहते ,खूब झड़प होती बाभन सूद तक बात आ ज़ाती ,लोग उनकी बातों से उत्तेजित नही होते वल्कि मजे लेते कोई पंडित की तरफ दारी करता तो कोई झब्बर की हुंकारी भरता ।
दोनो मे अजीब जलन थी पिछली बार विधान सभा चुनाव मे जब मंत्री जी ग्राम्य प्रवास पर थे झब्बर के घर खाना खाया था पंडित को अच्छा ना लगा ,जब गांव के लोग पंडित की पैलगी करते तो झब्बरक को अखरता
ना झब्बर कभी पंडित की पैलगी करते ना पंडित झब्बर की बन्दगी । गरीबी मे भी स्वाभिमान व सिद्धान्त पोषित हो २हा था ।
पंचायत के चुनाव मे सारदा प्रधान इस बार भी विजयी हुए थे गांव के बडे आदमी थे बड़े बडे लोगो से जान पहचान थी नेता मंत्री दरोगा सिपाही सबका आना जाना था जीत की खुशी मे एक भब्य भोज का कार्यक्रम किया था प्रधान ने ,पूरा गांव इर्द गिर्द के गांव के लोग आमन्त्रित थे और कुछ बड़े लोग भी मेहमान थे हवेली जैसा प्रधान का घर कुमकुम बत्तियों के प्रकाश से नहाया था बड़े बडे पंडाल लगे थे प्रधान जी ने दो तरह के भोज की व्यवस्था की थी एक वह जहां सारे गांव वालो के खाने की व्यवस्था थी दूसरा जहां बडे लोगो का खाना था ।
झब्बर ने सुना था कि मन्त्री जी भी आने वाले है मुलाकात हो जायेगी यही सोच कर वह उस पंडाल की ओर बढ़े चले गये जहां उन लोगो के खाने पीने बैठने की व्यवस्था थी ,अभी पंडाल मे कुछ सूट बूट वाले लोग ही थे झब्बर भी नया कुर्ता धोती पहन कर गये थे ,स्वजनो का सम्मान मिलता था अतः कोई संकोच ना हुआ,इधर उधर देखा और पंडाल मे पड़े सोफे पर बैठ गये।कुछ लोग भोजन कर रहे थे कुछ अभी आपस मे बाते कर रहे थे थोडी देर तक झब्बर युं ही बैठे रहे खाने की सोचते पर संकोच से मन पीछे हट जाता ,उधर पंडित ने झब्बर को वी० आई० पी० पंड़ाल की ओर जाते देखा तो उनसे रहा न गया पहले तो गांव वालो की पंघत मे ही खाने का विचार था पर अब तो प्रतिस्पर्धा का भाव आ गया ,सोचा झब्बर वहां खायेगा तो मै तो पंडित हूं प्रधान का पूरा परिवार पांलगन करता है,और वह भी उसी पंडाल की ओर बढ़ गये अंदर गये तो देखा कि झब्बर सोफे पर बैठे थे। पंडित प्रतियोगिता से सीधे भोजन के स्टाल की ओर चले गये प्लेट उठायी और भोजन निकालने लगे ,अब तो झब्बर का भी आत्म विश्वास बढ़ गया था उन्हे लगा कि वह नाहक संकोच कर रहे थे ,उठे प्लेट उठा कर आगे बढ़े इधर उधर देखा सब कुछ सहज था सामान्य था ,मन आत्माभिमान से पुलकित हो रहा था कि वह भी ऐरे गैरो मे नही सम्भ्रान्त जनो मे सम्मलित है ।
कहते है कि तूफान आने से पूर्व सागर मे शान्ति पराकाष्ठा पर होती है ऐसा ही कुछ घटित होने वाला था दोनों ने पहला निवाला ही लिया था कि प्रधान का छोटा बेटा बबलू व्यवस्था देखने आ गया पंडित और झब्बर को खाते देख उसकी आखें लाल हो गयीं त्योरियां चढ़ गयीं ,दांत जकड़ लिए ,महमानो के बीच आयोजन का तमाशा न हो बस यही डर था नही तो ना जाने क्या कर बैठता अमीरी ,गरीबी को अपने बराबर कैसे देख सकती ,मालिक मजूर को बराबर कैसे देख सकता था ,
बबलू भी स्वयं को रोक नही पाया । दोनों के हाथों से खाने की प्लेट छीन ली हाथ पकड़े और सीधे पंडाल के बाहर आ गया ,पंडित ,झब्बर अवाक थे,बबलू बोलता जा रहा था तुम लोग क्या जानो मान मर्यादा जरा सा मान मिल जाय तो सर पर चढ़ जाओगे वहां क्या मोती पका था जो गांव वालो के साथ नही खा सके ,खाना साग भात शौक नबाबो के , नेता बनने चले है राजवाड़ो के साथ खाने से राजवाड़े हो जाओगे दरिद्र कहीं के जरा सी भी इज्जत हो तो अब चले जाओ यहां से ,दोनों श्रवण शून्य अवाक जिस आत्माभिमान के प्रकाश मे वह वर्षों से जी रहे थे क्षण भर मे ग्लानि के अंन्धेरे मे बदल गया था ,उनके आपस के झगडो में अपमान को स्थान न था ,ऊंच नीच का भाव अवश्य था पर कटुता ना थी ,चुभन होती थी पर पीड़ा ना थी ,वह संज्ञा शून्य , तर्क हीन थे जो प्रकाश कुछ क्षण पूर्व आन्दित कर रहा था अब आखों मे चुभने लगा था ,वहां बज रहा संगीत कोलाहल सा लगने लगा था ,अब वह अपने धुंधले जीवन की ओर लौटना चाहते थे नजरें झुकी थी मानो दृष्टि से उदासीन हो गई हों हृदय आकुन्ठित धड़कनो से बेसुध था चेहरा कान्तिहीन था,उनके बोझिल पांव धीरे -धीरे प्रकाश से दूर जा रहे थे ज्यो ज्यों अंन्धेरा बढ़ रहा था उनमे चेतना भी बढ़ रही थी
अंधेरे मे कुछ दूर चलने के बाद झब्बर ने मौन तोड़ा और बोले पंडित इतना अपमान कभी ना हुआ जीवन मे ।
हां पर इस अपमान ने एक नया जीवन दिया हमको पंडित ने उत्तर दिया ,वह कैसे झब्बर ने जिज्ञासु भाव से पूद्दा ।
अगर जाति की बात होती ,तो मै तो बाभन हूं मुझे क्यो भगाता,और अगर जाति की बात थी मंगल प्रसाद दरोगा भी तो पासवान है और वह विकास अधिकारी वह भी तो हरिजन है
बात छोटे -बडे आदमी की है झब्बरभाई !
गरीब अमीर की बात है ,
इतना भी नही समझते ,हम तो नाहक जाति पांति पर झगड़ते रहे
पंडित ने उत्तर दिया ।
तब तो हम दोनो एक जाति के हुए ,गरीब जाति के ,झब्बर ने व्यंग भाव मे कहा ।
सच कहा तुमने आज मै अपनी जाति जान गया और यह जान कर कि हम तुम सगे है बहुत अच्छा लगा ,आओ गले लग जाओ बिरादर पंडित ने मुस्करा कर कहा ,
दोनो मस्करा रहे थे आखें छलक पड़ी थीं ,हम दोनों आज एक साथ बैठ कर खायेंगें रून्धे गले से पंडित कह रहे थे ।
चन्द्रमा से काले बादल छंट गये थे चारो ओर चादंनी बिखर गई थी रास्ता दिखने लगा था ,उजाला फिर से अच्छा लगने लगा था।
।।महेश मानव।।
![]() |
Story by Mahesh mishra Upload by Amrendra |
2 Comments
Too good ... Too much good
ReplyDeleteKya story thi .... Nice
ReplyDeleteComment shows what you think ... So please comment