भगवान राम और हनुमान का युद्ध


हनुमान को राम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। कहते हैं कि दुनिया चले न श्रीराम के बिना और रामजी चले न हनुमान के बिना, लेकिन फिर भी राम और हनुमान में युद्ध क्यों हुआ था आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा…

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम जब अपने 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या लोटे तो उन्होंने विशाल अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया। इस अश्वमेध में अनेको देशो के राजा और महान ऋषि मुनि शमिल थे। इस यज्ञ में ऋषि मुनियो के साथ भगवान राम के गुरु विश्वामित्र भी पधारे थे जिनका राजा ययाति द्वारा अनादर हो गया।
विश्वामित्र उस राजा से अत्यंत क्रोधित हुए तथा क्रोध में उन्होंने अपने शिष्य राम से कहा की सूर्यास्त होने से पहले मुझे इस राजा का कटा हुआ सर मेरे समक्ष चाहिए अन्यथा तुम्हे मेरे श्राप का सामना करना पड़ेगा। विश्वामित्रकी बात सुन राजा ययाति अपनी प्राण की रक्षा हेतु वहां से भागा तथा राम से बचने का उपाय सोचने लगा। वह जानता था की हनुमान के अलावा किसी व्यक्ति में भी इतना सामर्थ्य नही की वह उस राजा की राम से रक्षा कर सके परन्तु उसे यह भी पता था की अगर वह सीधे हनुमान जी के पास जाकर राम से अपनी प्राणो की रक्षा के लिए कहे तो हनुमान जी राजा की मदद नही करेंगे।
उपाय सूझते ही राजा हनुमान जी की माता अंजना के पास गया तथा उन्हें पूरी बात कहे बिना ही उनसे अपने प्राण रक्षा का आशीर्वाद ले लिया। आशीर्वाद पाते ही उसने माता अंजना से पूरी बात कहि तब माता अंजना ने हनुमान से राजा की रक्षा भगवान राम से करने को कहि। हनुमान जी अपने आराध्य देव प्रभु राम से युद्ध नही लड़ना चाहते थे वही वे अपनी माता की आज्ञा को भी नही ठुकरा सकते थे।
हनुमान जी पूरी तरह से धर्मसंकट में फस चुके थे आखिर करे तो करे क्या। तभी हनुमान जी को एक युक्ति सूझी, उन्होंने राजा को आदेश दिया की तुम सरयू नदी के तट पर जाओ तथा वहा पहुंच कर राम का नाम जपना शुरू कर दो। हनुमान जी स्वयं अपने आकर को छोटा कर राजा के पीछे जाकर बैठ गए। श्री राम उस राजा को ढूढ़ते हुए सरयू नदी के तट पर पहुंचे तथा उन्होंने राजा को जय श्री राम नाम जपते हुए पाया। उसे अपना भक्त जान राम वापस अयोध्या की और लोट चले तथा विश्वामित्र को उन्होंने पूरी बात बताई परन्तु विश्वामित्र अपनी बात पर अडिग रहे तथा राजा के वध की जिद करने लगे।
राम बड़ी दुविधा में थे की उन्हें अपने ही भक्त का वध करना पड़ेगा। ऐसे समय में वे हनुमान को याद कर रहे थे परन्तु उन्हें हनुमान कहि दिखे नही। उन्हे विश्वामित्र के जिद के आगे वापस सरयू नदी तट पर जाना पड़ा।
राम ने अपने बाणो से उस राजा पर वार किया तो राम नाम के जप के प्रभाव से सारे बाण स्वतः ही आकाश मार्ग में गायब होने लगे। तब राम ने बाणो का कोई असर न होते देख दिव्यास्त्रों का प्रयोग राजा पर करने की सोची। राम ने पहले शक्तिबाण का प्रयोग राजा पर किया, सूक्ष्म रूप में राजा के पीछे बैठे हनुमान ने राजा से सिया राम का नाम पुकारने को कहा क्योकि सिया राम जपने वाले पर शक्तिबाण का असर नही होता।
राम के द्वारा छोड़ा गया शक्तिबाण राजा के पास पहुचने से पहले बीच मार्ग में ही नष्ट हो गया। इसके बाद राम ने अनेको दिव्य बाण छोड़े जो उन्ही नाम के प्रभाव से बेअसर हो गए। अंत में जप राजा ने जय सियाराम के नाम के साथ ही जय हनुमान भी बोलना शुरू किया तो इन नामो में छिपे शक्ति और भक्ति के प्रभाव से राम को मूर्छा आने लगी।
तब ऋषि वशिष्ट, विश्वामित्र से बोले की आप को राम जी के प्राण इस तरह संकट में नही डालने चाहिए क्योंकि राम चाह कर भी उनका नाम जपने वाले भक्त का वध नही कर सकते। विश्वामित्र ने ऋषि विशिष्ट की बात को उपयुक्त मान व राम की बिगड़ती दशा को देखा अपना वचन राम से वापस ले लिया।
स्थिति को सम्भलता देख हनुमान अपने अकार को पुनः बढ़ाकर राजा के पीछे से बहार निकले तथा राम के समक्ष जाके उन्हें पूरी बात कहि। रामप्रसन्न होकर वहा उपस्थित सभी लोगो से बोले की स्वयं भगवान से भी बढ़कर ताकत उनके सच्चे भक्त में होती हैआज हनुमान ने यह बात सिद्ध करके दिखलाई है !
इसलिए कहा भी है की "राम से बड़ा राम का नाम"

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